उत्तराखंड राज्य सरकार 2027 में अर्ध कुंभ करायेगी या चुनाव कराएगी ।अर्ध कुंभ से ज्यादा महत्वपूर्ण तो राज्य सरकार के लिए 2027 के विधानसभा चुनाव ही होंगे
अधिकारी भी समझ रहे हैं की 2027 में होने वाले अर्धकुम्भ को किसी भी कीमत पर कुंभ का रूप नहीं दिया जा सकता। और न ही इस अर्ध कुंभ में कोई शाही स्नान होगा। और ना ही कोई पेशवाईयां निकलेंगे।
हरिद्वार में बैठे साधु संतों के स्वयंभू नेता हर घंटे अपना बयान बदल देते हैं, सरकार की ओर से घुड़की मिलने पर सरकार की और संतों की तरफ से घुड़की मिलने पर संतों की बातें करना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।
झूठ बोलने के माहिर ये उंगलियों पर गिने जाने वाले गेरुआ वस्त्र धारी कब क्या वक्तव्य दे दें इस पर कोई विश्वास नहीं किया जा सकता। इसीलिए ज्यादातर विद्वान और पढ़े-लिखे हरिद्वार के सन्त इन स्वयंभू नेताओ किसी भी बात पर विश्वास नहीं करते हैं। क्योंकि इनके कारनामे इन्हें इस कदर बदनाम कर चुके हैं कि सरकार जब भी इन्हें टेढ़ी निगाह से देखती है, यह सरकार के मुखिया के सामने दंडवत होते दिखाई देते हैं, और पुष्प गुच्छ लेकर सुबह ही देहरादून रवाना हो जाते हैं ।तो ऐसे स्वयंभू संतो की किसी भी बात पर विश्वास करना बेमानी साबित होगी। क्योंकि सनातन धर्म में कुम्भ और अर्धकुम्भ का तो वर्णन है ,लेकिन कुम्भ को कुम्भ ही कहा जाता है अर्ध कुंभ को कभी भी कुंभ साबित नहीं किया जा सकता।

अर्धकुंभ के इतिहास में अर्धकुंभ में शाही स्नान नही,न ही कोई पेशवाई।
हरिद्वार के इतिहास में किसी भी अर्ध कुंभ में शाही स्नान नहीं हुए हैं, और न ही पेशवाईयां निकली है ,अर्ध कुंभ में केवल मेला करने आए अधिकारियों की मौज रहती है टेंट खाली पड़ी जगह में गढ़वा दिए जाते हैं ,जिन में आवारा पशुओं को आराम करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। और इन टेंटो को लगाने उखाड़ने के नाम पर करोडो का खेल कागजों में हो जाता है, और भी बहुत सारे इसी तरीके के काम है जो कुंभ मेले से जुड़े अधिकारियों को बहुत रास आते हैं।
मुख्यमंत्री, पुष्कर सिंह धामी, चुनाव की तैयारी शुरू।
अर्धकुम्भ केवल अधिकारियों के लिए ,बजट को ठिकाने लगाने का स्वर्णिम अवसर होता है।छुट मुट कार्यो से अधिक कुछ नही होता,केवल माल ठिकाने लगता है।इसी लिए अपनी पोस्टिंग पहले ही करा लेते है जुगाड़ु अधिकारी।
अर्ध कुंभ में बहुत कुछ करने को होता नहीं है, केवल थोड़ा बहुत विकास का कार्य हरिद्वार में जरूर हो जाता है ।और उन विकास के कार्यों में भी जो सड़के बनाई जाती है वह ज्यादातर अर्ध कुंभ मेला समाप्त होने की अवधि से पहले ही उखड़नी शुरू हो जाती हैं। उनको कोई भी अधिकारी रोकने वाला नहीं है। क्योंकि सभी जानते हैं की अर्ध कुंभ में यह तो होना ही है। इसलिए केवल जांच करने की व थर्ड पार्टी जांच कराने की बातें की जाती हैं।
महंत रविन्द्र पूरी ,अध्यक्ष अखाड़ा परिषद
आज तक उन जांचों की रिपोर्ट के दायरे में किसी को कोई सजा हुई हो या किसी से कोई पैसे की रिकवरी कराई गई हो। अभी तक तो देखने को मिला नहीं है ।इसीलिए अधिकारी भी खुलकर अपना खेल करते हैं, उन्हें भी मालूम है की मेला समाप्त हो जाने के बाद कोई उनसे कुछ भी पूछने वाला नहीं होगा। यदि अगर किसी ने ज्यादा हाय तौबा की और जांच के नाम पर कोई कागज उनके पीछे-पीछे दौड़ा तो वह जांच करने वाले को भी सन्तुष्ट करना अच्छी तरीके से जानते हैं। जांच भी ठंडे बस्ती में चली जाती है ,और अगला कुंभ आ जाता है।

सोनिका, वीसी एचआरडीए
अर्धकुम्भ मेला अधिकारी
इन तीन गेरुआ वस्त्र धारी स्वयंभू नेताओं के सिर पर हरिद्वार के ही एक संघ से जुड़े हुए शंकराचार्य जी ने हाथ रखा हुआ है ,जिसकी वजह से यह तीनों ही अभी तक बचे हुए हैं।
क्योंकि इन शंकराचार्य जी के संबंध राज्य के मुखिया ही नहीं उत्तराखंड से भी ऊपर तक के नेताओ से जुड़े हुए हैं ।इसीलिए यह तीनों शंकराचार्य जी के आश्रम में शंकराचार्य जी की चरण वंदना करने आते रहते हैं। जिसके फल स्वरुप यह तीनों ही अभी तक मौज उड़ा रहे हैं। लेकिन कहावत है के चालाकी, चतुराई और धन ज्यादा दिन रक्षा नहीं करता है ।एक न एक दिन तो करनी का फल भरना ही पड़ता है ।और यह फल इस युग में इस धरती पर ही भरना होता है। मृत्यु के बाद तो किसी का कोई भरोसा नहीं के उस लोक में किसको क्या मिल रहा है। और क्या नहीं मिल रहा है, जो भी कुछ देखने को मिलेगा वह यही और इसी युग में मिलेगा।
हरि गिरी जी महाराज, जूना अखाड़ा
सब कुछ जानते हुए भी चाटुकारों की फ़ौज भी रहती है, इन धन कुबेर सन्तो के आगे पीछे
चाटुकारों की लंबी चौड़ी फौज इन दो-तीन संतों के आगे पीछे डोलती रहती है क्योंकि इन चाटुकारों को अपना मतलब निकालना होता है, अपने घर की रोटी चलानी होती है, किसी को गाड़ी खरीदनी होती है, किसी को मोटरसाइकिल खरीद नहीं होती है ,किसी को बिल्डिंग बनानी होती है, किसी को मकान बनाने होते है, और न जाने क्या-क्या करना होता है, यह सब इन तथाकथित सन्तो की चाटुकारीता करने से ही प्राप्त हो सकता है, और उस चाटुकारिता में सभी कुछ शामिल है, कुछ भी चीज यह चाटुकार इन स्वयंभू नेताओं को समर्पित करने के लिए तैयार रहते हैं।
