Bihar Caste Survey: बिहार की राजनीति में महागठबंधन इस समय भी बहुत मजबूत है। माना जाता है कि लालू प्रसाद यादव के पास एमवाई समीकरण (मुस्लिम, यादव और अन्य पिछड़ी जातियों के रूप में) के साथ लगभग 30 फीसदी वोटों का समर्थन हासिल है। नीतीश कुमार कुर्मी, कुशवाहा, कोइरी जातियों के साथ लगभग 15 फीसदी वोटों पर दावा रखते हैं…
पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में जातिगत सर्वे का रास्ता साफ कर दिया है। इस मोर्चे पर बिहार के महागठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई है। इससे आगामी लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को लाभ मिल सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरह का इशारा किया है, माना जा रहा है कि विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया आगामी लोकसभा चुनाव के पूर्व इस मुद्दे को जोरशोर से उठाएगा। इससे भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए को न केवल बिहार में, बल्कि दूसरे राज्यों में भी नुकसान हो सकता है। बड़ा प्रश्न है कि इंडिया गठबंधन जातिगत सर्वे के बहाने मोदी को कितना नुकसान पहुंचा पाएगा और इसका किन राज्यों में सबसे ज्यादा असर देखने को मिल सकता है बिहार की राजनीति में महागठबंधन इस समय भी बहुत मजबूत है। माना जाता है कि लालू प्रसाद यादव के पास एमवाई समीकरण (मुस्लिम, यादव और अन्य पिछड़ी जातियों के रूप में) के साथ लगभग 30 फीसदी वोटों का समर्थन हासिल है। नीतीश कुमार कुर्मी, कुशवाहा, कोइरी जातियों के साथ लगभग 15 फीसदी वोटों पर दावा रखते हैं। दोनों दलों के साथ आने से महागठबंधन लगभग 45 फीसदी वोट शेयर हासिल करने की स्थिति में हैं, जिसे पछाड़ पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है।तेजस्वी यादव भूमिहार जाति सहित कई अगड़ी जातियों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि उनकी कोशिश सफल रही तो यह मत प्रतिशत 50 के पार भी जा सकता है, जो महागठबंधन को बिहार में अजेय बना सकता है। इस मुद्दे की संवेदनशीलता को भांपते हुए ही भाजपा भी बिहार में इसका विरोध नहीं कर पा रही है। इसे नीतीश कुमार का वह ब्रह्मास्त्र माना जा रहा है, जो भाजपा के राम मंदिर दांव को भी मात दे सकता है।जातिगत जनगणना का मुद्दा बिहार, झारखंड में बहुत ज्यादा असरदार हो सकता है। यदि सभी विपक्षी दल इसे मजबूती से उठाते हैं तो इसका उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित कुछ अन्य राज्यों में भी असर हो सकता है।
जातिगत सर्वे में कोई बुराई नहीं’
राजनीतिक विश्लेषक संजय तिवारी ने अमर उजाला से कहा कि इस समय भी देश में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों की जातिगत गणना होती है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी लगभग 16.6 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों की आबादी लगभग 8.6 फीसदी है। दोनों मिलाकर 25 फीसदी से ज्यादा आबादी का हिस्सा हैं और उनकी जनगणना की जाती है। इन आंकड़ों का उपयोग केंद्र-राज्य सरकारों के द्वारा इनके उत्थान के लिए किया जाता है।ऐसे में यदि अन्य पिछड़ी जातियों या सभी जातियों की जनगणना की जाती है तो इसमें कोई बहुत परेशानी नहीं आने वाली है। यदि सरकारें सत्यता के साथ सभी वर्गों के विकास के लिए काम करें तो इस कदम को गलत नहीं कहा जाना चाहिए।
अनुसूचित जातियों-जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर भी जीती भाजपा
पिछले चुनाव परिणाम बताते हैं कि जातीय राजनीति करने वाले दलों (समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल इत्यादि) के रहते हुए भी भाजपा ने इन वर्गों में अपनी पैठ बनाई है। इन वर्गों में उसका समर्थन बढ़ा है। अनुसूचित जातियों-जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर भी भाजपा के उम्मीदवारों का बड़ी संख्या में जीतना भी यह बात प्रमाणित करता है कि इन वर्गों में भाजपा के लिए आकर्षण बढ़ा है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि केवल इस मुद्दे के सहारे इंडिया गठबंधन भाजपा को रोकने में पुरी तरह कामयाब हो जाएगा।
लेकिन ये है परेशानी
जातिगत सर्वे से अगड़ी जातियों में एक चिंता का भाव देखा जा रहा है। उन्हें लगता है कि इस सर्वे के बहाने आगे चलकर उनके लिए सरकारी नौकरियों के अवसर और ज्यादा कम किए जा सकते हैं। संजय तिवारी ने कहा कि देश का राजनीतिक अनुभव बताता है कि इस देश के लिए धार्मिक राजनीति जितनी खतरनाक साबित हुई है, जातीय राजनीति उससे कम खतरनाक नहीं रही है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसके कारण जातीय तनाव देखने को मिलते रहे हैं।
जातिगत आरक्षण की सबसे बड़ी बुराई रही है कि इसका लाभ उन वर्गों के एक सीमित वर्ग ही उठा पाते हैं। जैसे अनुसूचित जातियों के लिए दिया गया आरक्षण केवल जाटव जातियों तक सीमित रह गया, जबकि बड़ा अनुसूचित हिस्सा इससे वंचित रह गया। इसी प्रकार पिछड़ी जातियों के लिए दिया गया आरक्षण केवल यादव-कुर्मी जैसी ताकतवर जातियों तक सिमटकर रह गया। इस आरक्षण का लाभ दूसरी जातियों तक पहुंचाने के लिए आरक्षण को उपवर्गों में बांटने की रणनीति अपनाई जा रही है। इसे एक अच्छा कदम कहा जा सकता है। इससे आरक्षण का लाभ ज्यादा जातियों में विभाजित कर सबको विकास का समान अवसर देने में काम आएगा।
योग्यता को भी मिले अवसर
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के समय में इसी तरह का मुद्दा सामने आया था। उच्च जातियों को मेडिकल में अपने लिए सीटें कम होने की आशंका सता रही थी, जबकि पिछड़ी जातियां अपने लिए आरक्षण की मांग कर केंद्र के लिए परेशानी का कारण बना रही थीं। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने सीटों की संख्या इतनी अधिक बढ़ाने का सुझाव दिया था, जिससे सामान्य वर्ग के बच्चों के लिए अवसरों की कमी न हो और पिछड़े तबकों को आरक्षित सीटों का लाभ भी मिल जाए। उनके सुझाव को मानते हुए सीटें बढ़ाकर एक अच्छा विकल्प पेश किया गया।राजनीतिक दलों और सरकारों को समझना चाहिए कि यदि देश में सभी वर्गों का विकास करना है, तो उसके लिए योग्यता को आगे बढ़ाना ही होगा। योग्य युवा ही देश का विकास करेंगे। ऐसे में शिक्षा और नौकरियों के इतने अवसर विकसित करना चाहिए, जिससे आरक्षित वर्गों को लाभ देने के साथ-साथ योग्य युवाओं को भी समान रूप से अवसर मिल सके। यदि ऐसा नहीं हुआ तो देश का विकास प्रभावित हो सकता है।
