लखनऊ में जन्मे कुशाल टंडन ने छोटे परदे पर जो नाम कमाया है, वह उनकी मेहनत और अपने पेशे के प्रति उनके समर्पण का परिणाम है। न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी से अभिनय का प्रशिक्षण लेने वाले कुशाल मानते हैं कि अभिनय सीखा नहीं जा सकता। उनका नया धारावाहिक ‘बरसातें मौसम प्यार का’ सोमवार से शुरू हो रहा।छह साल बाद टेलीविजन पर आपकी वापसी हो रही है, इतना लंबा ब्रेक लेने की कोई खास वजह?
इसकी कोई योजना तो नहीं थी, बस ये हो गया। 2016 में मैंने धारावाहिक ‘बेहद’ में काम किया था ये शो 2017 के आखिर तक चला। 2018 में ही मैंने एकता कपूर की वेब सीरीज ‘हम’ की थी। 2019 में मैंने एकता कपूर की ही वेब सीरीज ‘बेबाकी’ की। 2020 में मैंने एक रेस्तरां मुंबई में खोला तो उसमें व्यस्त हो गया। इसके बाद कोविड आ गया। दो साल उसमें निकल गए। पिछले साल चोट लगने के कारण छह महीने बेड रेस्ट पर था।
रेस्तरां कहां शुरू किया?
यहीं मुंबई में। छह हजार वर्ग फिट की जगह लेकर मैंने इसे शुरू किया था। अब तो ये बंद हो गया है लेकिन इसके चलते बहुत नुकसान हुआ। 14 लाख रुपये प्रति महीना तो इसका किराया था। डेढ़ साल कोविड में बंद रहने का मतलब था कि डेढ़ करोड़ रुपये तो मुझे किराये में ही खर्च कर देने पड़े। लेकिन, इसने मुझे जो सिखाया, उसका उपयोग मैं अब अपनी कंपनी के लिए करने जा रहा हूं। अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरू करने का इरादा है। इसके तहत हम फिल्में और वेब सीरीज बनाएंगे।लखनऊ की पृष्ठभूमि हिंदी मनोरंजन जगत में कितना मदद करती है?
लखनऊ में मेरी परवरिश हुई है। पढ़ाई मेरी सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में हुई। मैं बोर्डिंग स्कूल का पढ़ा हुआ हूं तो इसके सबक मुझे संस्कृतियों के हिसाब से खुद को ढालने में मदद करते हैं। ग्वालियर के बाद मैं एक साल के लिए दिल्ली गया था। फिर मुंबई आ गया। मिस्टर इंडिया बन गया। उसके बाद न्यूयॉर्क चला गया फिल्म अकादमी से ग्रैजुएशन करने। एक्टिंग सीखने चला गया था।
और कितना फर्क आया न्यूयॉर्क में अभिनय की पढ़ाई करने के बाद आपकी अदाकारी में?
मेरे हिसाब से कुछ खास फर्क नहीं आता। मेरा तो ये था कि चलो देखकर आते हैं कि क्या सिखाते हैं। मेरा यही मानना है कि एक्टिंग सीखी नहीं जा सकती। ये अंदर से आती है। आप किसी किरदार को अंदर से कितना महसूस कर पाते हैं, वही अदाकारी है।मिस्टर इंडिया का खिताब आपने जीता 2005 में और आपका जन्म हुआ 1985 में, इस कंपटीशन के लिए तो आपकी उम्र ही पूरी नहीं थी?
हां, 19 साल का था मैं जब मैंने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। यह सही है कि उसमें 21 साल से कम के प्रतिभागियों को हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी। आपको सही बात बताता हूं। दरअसल, मैंने इसमें हिस्सा लेने के लिए एक नकली प्रमाणपत्र बनवाया था कि मैं सेकेंड ईयर कॉलेज में हूं। बात सिर्फ हिस्सा लेने की थी लेकिन मैं तो कंपटीशन जीत गया। मेरे दोस्तों को भी यकीन नहीं था कि मैं मिस्टर इंडिया बन जाऊंगा।और, ये जो आपके हाथ पर टैटू है संध्या के नाम का..
संध्या टंडन मेरी मां का नाम है। उनके नाम का टैटू मैंने अपने हाथ पर बनवाया हुआ है। क्या है कि लडकियां तो बदलती रहती है, उनका नाम लिखवाने का फायदा नहीं है। एक मां ही है जो कभी नहीं बदलेती। मैं मम्मी पापा से बहुत जुड़ा हूं। डैड का नाम बीरेंद्र टंडन है लेकिन लखनऊ में लोग उन्हें बिल्लू भाई के नाम से जानते हैं। ट्रांसपोर्ट का कारोबार है उनका।युवाओं के संघर्ष में उनके माता पिता के साथ को कितना जरूरी मानते हैं आप?
यही सबसे ज्यादा जरूरी होता है। मेरे लिए तो मेरे मां बाप ही भगवान हैं। ये बात मैं दिल से कह रहा हूं कि किसी भगवान को भी मानने की जरूरत नहीं अगर हम अपने मां बाप को मानते हैं। वही भगवान हैं। उन्हीं के रूप में भगवान हैं। उनको दुख दोगे, तो तुम्हें दुख मिलेगा। उनको सुख दोगे, तो तुम्हें ऐसे ही सब कुछ मिल जाएगा।और, ‘बरसातें मौसम प्यार का’ की कहानी में ऐसा क्या दिखा कि इतने लंबे अरसे बाद आपने टेलीविजन में वापसी के लिए हां कर दी?
इसका किरदार ही इस धारावाहिक को करने की मुख्य वजह रही। एकता (कपूर) मैडम का फोन आया था। उन्होंने कहा कि मैं एक शो लिख रही हूं और तुम्हें दिमाग में रखकर लिख रही हूं। ये एकता कपूर जैसी निर्माता की तरफ से मिली एक बहुत बड़ी प्रशंसा है। दूसरी बात ये है कि ये एक पुरुष प्रधान धारावाहिक है। भारत मे टेलीविजन महिला प्रधान कहानियों के लिए ही जाना जाता है। मेरा एक न्यूज चैनल के मालिक का किरदार है और इस इस किरदार के लिए मैंने उन सारे पत्रकारों से सीखा है जिन्हें मैं जानता हूं या जो मेरे मित्र हैं। हां, किसी न्यूज चैनल नहीं गया मैं इसके बारे में कोई रिसर्च करने। मुझे जो स्क्रिप्ट में मिला, वही मैंने किया है।एक न्यूज चैनल के हेड का अपने ही चैनल की रिपोर्टर के साथ रोमांस नैतिक रूप से कितना सही मानते हैं आप?
इसमें गलत ही क्या है? प्यार तो किसी से भी हो सकता है। प्यार का कोई नैतिक दायरा नहीं है। काम करने के स्थान पर अगर किसी को किसी से प्यार हो जाता है तो हिचकने की जरूरत नहीं हैं। कहां लिखा है ऐसा कि काम करने के स्थान पर एक बॉस को अपनी अधीनस्थ कर्मचारी से प्यार नहीं हो सकता?चैनल का हेड अगर किसी रिपोर्टर से प्यार करता है तो दूसरे रिपोर्टर्स के मुकाबले उसको चैनल पर ज्यादा तवज्जो भी मिलेगी, क्या ऐसा कुछ है ‘बरसातें’ की कहानी में?
सर, ये एक टीवी शो है। कहानी प्यार की है। इसमें न्यूज चैनल का प्रोफेशन बस कहानी का आधार है। मूल रूप से ये एक प्रेम कहानी है। काम करने के स्थान पर दो लोगों के बीच प्यार हो गया है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि आप अपनी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी से प्यार नहीं कर सकते। कितनी बार होता है कि डायरेक्टर को अपनी असिस्टेंट से प्यार हो जाता है। प्यार की कोई शर्त नहीं है। प्यार आप खुद करते नहीं है ये बस हो जाता है।
