भूपतवाला स्थित अखंड दया धाम में बिना अनुमति चल रहा निर्माण कार्य
हरिद्वार ब्यूरो: मोहित शर्मा
हरिद्वार—शहर की पवित्रता और धार्मिक गरिमा को बनाए रखने के उद्देश्य से हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण (HRDA) द्वारा जिन क्षेत्रों को “नो कंस्ट्रक्शन ज़ोन” घोषित किया गया था, वहां निर्माण कार्यों का जारी रहना विभाग की निष्क्रियता और संभावित मिलीभगत को दर्शाता है
हरुविप्रा की बोर्ड बैठक में शिवालिक नगर, श्रवणनाथ नगर, भूपतवाला, और सप्तसरोवर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को एक महीने के लिए ‘नो कंस्ट्रक्शन ज़ोन’ घोषित किया गया था। इस अवधि में किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य, नक्शा पासिंग, या व्यावसायिक निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध था।
अवैध निर्माण की अनदेखी या मौन स्वीकृति?
बावजूद इसके, भूपतवाला क्षेत्र, विशेष रूप से अखंड दया धाम (तुलसी मानस मंदिर से पहले, सप्तसरोवर मार्ग पर स्थित) में निर्माण कार्य खुलेआम जारी है। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या प्राधिकरण की निगरानी व्यवस्था विफल है या फिर विभागीय स्तर पर कोई ‘सिस्टमेटिक कवर-अप’ चल रहा है?
स्थानीय निवासियों ने बताया कि यह क्षेत्र पहले भी आवासीय नक्शों पर व्यावसायिक गतिविधियों का गढ़ बन चुका है, जिसकी शिकायतें पूर्व में भी दर्ज की गई थीं।
राजनीतिक हस्तक्षेप या अधिकारियों की निष्क्रियता?
मार्च 2025 में हरुविप्रा द्वारा रावली महदूद में एक भाजपा नेता के करीबी की कॉलोनी पर बुल्डोजर चलाया गया था, जो यह दर्शाता है कि यदि इच्छा हो, तो विभाग सख्त कार्रवाई कर सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सभी अवैध निर्माणों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जा रहा है?
“राजनीतिक संरक्षण और सफेदपोशों से गठजोड़”
जानकारों का कहना है कि कुछ प्रभावशाली लोगों के संरक्षण के कारण चुनिंदा मामलों में ही कार्रवाई की जाती है, जिससे अन्य लोग भी मनमानी करने को स्वतंत्र हो जाते हैं। इसका सीधा असर शहर की बनावट, यातायात, और पर्यावरण पर पड़ता है।
कानून का भय न होने से बेलगाम निर्माण
‘नो कंस्ट्रक्शन ज़ोन’ आदेश की अवहेलना कर जारी निर्माण यह दर्शाता है कि अब निर्माणकर्ताओं को न तो कानून का डर है और न ही प्राधिकरण की छवि में कोई भय।
यह स्थिति उस समय और भी गंभीर हो जाती है जब मामला गंगा नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों का हो, जहां स्वच्छता, प्रवाह और धार्मिक आस्थाओं की गरिमा बनी रहनी चाहिए।
प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी निगाहें
अब यह देखना शेष है कि प्राधिकरण इस स्पष्ट उल्लंघन पर क्या कदम उठाता है। क्या यह एक और मामला “फाइल में दबकर” रह जाएगा या एक मिसाल कायम की जाएगी?
यदि हरुविप्रा अवैध निर्माणों के प्रति निष्क्रिय बना रहता है, तो भविष्य में इसके निर्णयों की गंभीरता और विश्वसनीयता दोनों पर प्रश्नचिह्न लगना तय है।
