जनता विरोध पर भी नहीं टूटी आयोजकों की हठ, प्रशासन की चुप्पी पर उठ रहे सवाल
ब्यूरो :मोहित शर्मा
हरिद्वार।ऋषिकुल मेले में एंट्री फीस लगाए जाने को लेकर मचा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। सुबह से ही खबर फैली हुई थी कि प्रशासन जनता की मांग को देखते हुए एंट्री फीस खत्म करने जा रहा है, लेकिन दिन ढलते तक हकीकत बिल्कुल उलट साबित हुई। फीस वसूली जस की तस जारी रही और अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।
स्थानीय लोग और श्रद्धालु इसे आस्था से खिलवाड़ और धार्मिक परंपराओं का अपमान बता रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या हरिद्वार जिले का प्रशासन इतना कमजोर हो चुका है कि आयोजकों के सामने बेबस नजर आ रहा है?
जनता की नाराज़गी और गुस्सा
मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि धार्मिक मेलों में जबरन एंट्री फीस लेना बेहद आपत्तिजनक है। हरिद्वार जैसी पावन नगरी, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान और धार्मिक आयोजनों के लिए आते हैं, वहां आस्था पर आर्थिक बोझ डालना गलत है।
स्थानीय व्यापारियों ने भी एंट्री फीस पर नाराज़गी जताई। उनका कहना है कि इस तरह की वसूली से मेले में भीड़ घटेगी और इसका सीधा असर दुकानदारों और छोटे कारोबारियों पर पड़ेगा।
ऋषिकुल मैदान और सिटी मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी पर सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऋषिकुल मैदान की भूमि सीधे तौर पर सिटी मजिस्ट्रेट की देखरेख में आती है। नियमों के अनुसार, यहां आयोजित किसी भी मेले या कार्यक्रम में जिला प्रशासन या सिटी मजिस्ट्रेट की ओर से कोई शुल्क निर्धारित नहीं किया जाता।
इसके बावजूद मेला आयोजक अपनी जेब भरने के लिए एंट्री फीस और पार्किंग शुल्क वसूल रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह सीधा-सीधा नियमों का उल्लंघन और जनता के साथ धोखाधड़ी है। सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर जिला प्रशासन और सिटी मजिस्ट्रेट इस अनियमित वसूली पर मौन क्यों साधे बैठे हैं?
समाजसेवियों का तेवर, सीएम तक जाने की तैयारी
कई समाजसेवियों और सामाजिक संगठनों ने इस मामले को लेकर कड़ा रुख अपनाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि अगर जिला प्रशासन इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो वे इसे सीधे मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाने को मजबूर होंगे।
एक समाजसेवी ने कहा – “धार्मिक मेलों में एंट्री फीस लगाना सरासर जनता के साथ धोखा है। अगर प्रशासन चुप बैठा रहा, तो हम आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे और यह मामला सीएम तक लेकर जाएंगे।”
प्रशासन की चुप्पी बनी रहस्य
सुबह से ही अधिकारियों की ओर से यह संदेश दिया जा रहा था कि एंट्री फीस पर रोक लगाई जाएगी, लेकिन शाम तक न तो कोई आदेश जारी हुआ और न ही जनता को राहत मिली।
जनता का कहना है कि यह “चुप्पी” कहीं न कहीं आयोजकों को बचाने और उन्हें खुली छूट देने का संकेत है। अब यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या मेले के आयोजक वास्तव में जिला प्रशासन से बड़े हो गए हैं
आगे की राह
अब सबकी निगाहें डीएम और शासन पर टिकी हुई हैं। यदि समय रहते हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो यह विवाद और गहराता चला जाएगा।
व्यापारियों ने मेले में शुल्क वसूली को लेकर सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा ज्ञापन
हरिद्वार। जिला व्यापार मंडल के पदाधिकारियों ने मंगलवार को सिटी मजिस्ट्रेट मनीष सिंह को ज्ञापन सौंपकर मेले में व्यापारियों से जबरन शुल्क वसूले जाने पर आपत्ति जताई।
व्यापारियों का कहना है कि मेले में दुकान लगाने के लिए उनसे अतिरिक्त शुल्क लिया जा रहा है, जो अनुचित है। इस पर सिटी मजिस्ट्रेट मनीष सिंह ने स्पष्ट किया कि संबंधित भूमि ऋषिकुल संस्था द्वारा आरक्षित है और जिस मेले का आयोजन किया गया है, वह सरकारी मेला नहीं बल्कि निजी आयोजन है। आयोजक ने ऋषिकुल से भूमि लेकर अनुमति प्राप्त की है, इसलिए इस मामले में सीधे तौर पर सरकारी विभाग दखल नहीं दे सकता।
हालांकि, सिटी मजिस्ट्रेट ने आश्वासन दिया कि व्यापारियों की शिकायत पर मेला संचालक को बुलाकर वार्ता की जाएगी, ताकि समस्या का समाधान निकाला जा सके।
लेकिन अब एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है—क्या ऋषिकुल किसी निजी व्यक्ति को शुल्क लेकर भूमि आरक्षित कर सकता है और उसे मेला लगाने की अनुमति दे सकता है? यह बिंदु प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के लिए भी विचारणीय बना हुआ है।
