हरिद्वार/मेरठ।जब भक्ति सच्ची हो, तो शरीर की सीमाएँ भी आस्था के मार्ग में बाधा नहीं बनतीं। 68 वर्षीय राकेश कुमार कौशिक जी की यह प्रेरणादायक कहानी महज एक यात्रा नहीं, बल्कि अद्वितीय आस्था, अदम्य साहस और निष्ठा का ऐसा उदाहरण है जो समाज को भक्ति के वास्तविक स्वरूप से परिचित कराता है।
उत्तराखंड के पावन हरिद्वार से लेकर उत्तर प्रदेश के मेरठ तक की यह यात्रा कोई आम यात्रा नहीं थी। राकेश कौशिक जी, जो शारीरिक रूप से पैरों से अक्षम हैं, उन्होंने केवल अपने दृढ़ निश्चय और अपार भक्ति के बल पर यह कठिन सफर तय किया। उन्होंने गंगा मैया से पावन जल भरकर उसे शिवभक्तों की पंरपरा अनुसार कांवड़ के रूप में मेरठ स्थित शिव मंदिर में जाकर अर्पित किया।
जब शरीर थकता है, तो आत्मा रास्ता दिखाती है
राकेश जी बताते हैं कि यह संकल्प उन्होंने पिछले वर्ष महाशिवरात्रि पर लिया था कि चाहे जो हो जाए, वे एक बार हरिद्वार से गंगाजल लाकर भोलेनाथ को अर्पित करेंगे। चिकित्सकों की चेतावनियों और समाज के कई लोगों की हतोत्साहित करने वाली बातों के बावजूद, उन्होंने अपने मन की बात सुनी। व्हीलचेयर और सहायकों के सहारे उन्होंने यह असंभव सा दिखने वाला कार्य संभव कर दिखाया।
“मैंने महसूस किया कि अगर मन में शिव हों, तो रास्ते अपने आप बनते हैं,” उन्होंने नम आंखों से कहा।
भक्ति की राह पर चलता है संकल्प, थमता नहीं जीवन
इस यात्रा में न केवल उनकी शारीरिक अक्षमता बल्कि कठिन मौसम, मार्ग की बाधाएं और कई बार निराशा भी उनकी परीक्षा लेती रही। लेकिन हर बार उनका उत्तर केवल एक था — “हर हर महादेव!”
उनकी सेवा में लगे स्वयंसेवकों और राहगीरों ने राकेश जी की भक्ति को देखकर न केवल सम्मान दिया बल्कि कई लोगों की आंखों में आंसू भी छलक आए।
